प्राकृतिक सामग्री से बनी राखियों ने पाई खास पहचान, एनआरएलएम से सशक्त हो रहीं जौनपुर की महिलाएं 

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नैनबाग- नैनबाग क्षेत्र की महिलाएं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के माध्यम से आत्मनिर्भरता की ओर तेज़ी से अग्रसर हो रही हैं।

टिकरी गांव की ‘मां भवानी ग्राम संगठन’ और ‘राधा रानी स्वयं सहायता समूह’ की महिलाएं इस वर्ष भी पिरुल, रेशम, मोर पंख, मोती व साधे धागों जैसी प्राकृतिक व स्थानीय सामग्री से विविध प्रकार की राखियाँ तैयार कर रही हैं, जो बाजार में विशेष लोकप्रियता प्राप्त कर रही हैं।

मां भवानी ग्राम संगठन की अध्यक्ष सोनम खन्ना ने बताया कि समूह की महिलाएं हर वर्ष एनआरएलएम से रिवॉल्विंग फंड पर मात्र 1% ब्याज दर पर ऋण लेकर राखी निर्माण कार्य प्रारंभ करती हैं। सामान्यतः 10–15 महिलाएं मिलकर 5 से 10 हजार राखियाँ तैयार करती हैं, परंतु इस वर्ष पंचायत चुनाव में व्यस्तता के चलते केवल 5000 राखियाँ ही तैयार हो सकीं।

सोनम ने बताया कि पिरुल से बनी राखियों की लागत लगभग ₹5 आती है, जिसे स्थानीय बाजार में ₹40–50 में बेचा जाता है। वहीं, मोर पंख और मोती से बनी राखियों की लागत ₹10–15 आती है और उन्हें ₹50–60 में बाजार में बेचा जा रहा है।

राधा रानी समूह की नीलम धीमान ने बताया कि एनआरएलएम की मदद से न केवल समूह की महिलाओं की आर्थिक स्थिति सशक्त हो रही है, बल्कि वे अन्य महिलाओं को भी प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बना रही हैं।

उत्तरकाशी और विकासनगर से बढ़ती मांग 

 

सोनम खन्ना ने बताया कि हर वर्ष उत्तरकाशी से राखियों की अधिक मांग आती है, किंतु इस वर्ष पूर्ण डिलीवरी संभव नहीं हो सकी। विकासनगर से भी राखियों के ऑर्डर प्राप्त हुए हैं, जिससे महिलाओं के उत्साह में वृद्धि हुई है।

प्रशिक्षण शिविर की हो रही मांग 

 

नीलम धीमान ने बताया कि समूह की राखियों की लोकप्रियता को देखते हुए विभिन्न क्षेत्रों से प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने की मांग की जा रही है। विशेष रूप से उत्तरकाशी की सीमा से लगे क्षेत्रों की कई महिलाएं उनसे संपर्क कर रही हैं।

लक्ष्य – लखपति दीदी बनना 

 

समूह की महिलाएं केवल राखी निर्माण ही नहीं, बल्कि मौसमी अचार, सजावटी सामग्री और अन्य पहाड़ी उत्पादों का निर्माण भी कर रही हैं। नीलम धीमान ने कहा कि एनआरएलएम की योजनाएं महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रही हैं और समूह की महिलाएं जल्दी ही “लखपति दीदी” बनने का सपना साकार करेंगी।

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