सुरूचि के मार्ग पर चलते रहेंगे तो परलोक क्या इस लोक में भी सम्मान के साथ नहीं जी पाओगे – डॉ. श्यामसुंदर पाराशर
सुरूचि के मार्ग पर चलते रहेंगे तो परलोक क्या इस लोक में भी सम्मान के साथ नहीं जी पाओगे – डॉ. श्यामसुंदर पाराशर
ध्रुव बोले वे कहां मिलेंगे माता मां बोली वे तो कण-कण में विराजमान हैं। तब ध्रुव रातोंरात उस परमपिता की ढूंढ में निकल पड़े। रास्ते में नारद मिले पहले परीक्षा ली फिर दीक्षा देकर तप करने के लिए कहा। सद्गुरु का मंत्र पाकर यमुना तट पर तप करने लगे। ध्रुव मन ही मन भगवान के ध्यान में लीन थे तभी पांच माह तपस्या के बाद ध्रुव ने परमेश्वर को साक्षात् अपने सामने उपस्थित देखा। अत्यंत व्याकुल होकर उसने अनेक प्रकार से भगवान को प्रणाम किया। भगवान ने ध्रुव के माथे पर अपना शंख स्पर्श किया। ध्रुव को वेदों के सार का ज्ञान हो गया। ध्रुव की तपस्या और प्रार्थना से प्रसन्न होकर, भगवान ने उसे ध्रुवतारा के रूप में प्रसिद्धि प्रदान की।
महाराज ने कहा हमारे पास भी सुनिति व सुरूचि की तरह दो बुद्धि हैं। सुंदर नीति की राह पर चले तो सुनिति या बुद्धिमानी व अविविकेकयुक्त कार्य करें तो सुरूचि। हम बातें तो नीति की करते हैं लेकिन प्रभाव में सूरूचि के रहते हैं जिससे आचरण व व्यवहार अपनी मर्जी के करने लगते हैं। नीति के अनुसार चलोगे तो लोग परलोक सुधर जायेंगे। सुरूचि के मार्ग पर चलते रहेंगे तो परलोक क्या इस लोक में भी सम्मान के साथ नहीं जी पाओगे। उन्होंने सगर पुत्रों के उद्धार के लिए मां गंगा के अवतरण की कथा भी सुनाते हुए कहा कि गंगा में बढ़ता प्रदूषण विडम्बना है। गंगा तट पर रहने वाले लोगों का परम कर्तव्य है कि सुर सरिता मां को गंगा को सदैव निर्मल व पवित्र बनायें रखें। श्री कृष्ण के प्राकट्य के साथ कंस की क्रूरता व देवकी की करूणा से भरी कहानी से दर्शकों को अश्रुओं से भावुक कर दिया। कंस के प्रकोप से बचने के लिए वासुदेव कान्हा को गोकुल ले जा रहे थे तो तभी यमुना में बाढ़ आई। यमुना को कृष्ण़ की पटरानी माना जाता है। यमुना बालकृष्ण के पैर छूना चाह रही थी। इसी प्रयास में नदी का पानी ऊपर उठने लगा। इसके बाद बालकृष्ण ने अपना पैर टोकरी से निकालकर बाहर रखा। कथा में नित्य की तरह 108 आचार्यों द्वारा भागवत का मूल पारायण व विश्वनाथ मंदिर में यजमान कथा के यजमानों यज्ञ पंडितो द्वारा विष्णु याग में आहुतियां दी जा रही हैं।
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कथा पांडाल में आयोजन समिति के पदाधिकारी सदस्य, स्वयंसेवक व सैंकड़ों श्रद्धालुओं के द्वारा देवडोलियों के दर्शन के पश्चात अष्टोत्तरशत श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण किया जा रहा है। आज काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत जयेन्द्र पुरी भी उपस्थित रहे।
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